हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष तिथि की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा की रात का महत्व बहुत ज्यादा माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है।
इस साल 16 अक्तूबर को शरद पूर्णिमा होगी, जिस दिन कोजागरी लक्ष्मी पूजा भी की जाती है। शरद पूर्णिमा की रात को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है। कहा जाता है कि इस दिन आसमान से अमृत की बारिश होती है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को चांद की रोशनी में खीर रखने की परंपरा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश के कुछ शहरों में जब शरद पूर्णिमा की रात को खुले आकाश के नीचे खीर को रखा जाता है, तब वह काला पड़ जाता है! क्यों होता है ऐसा? क्या आसमान से बरसता अमृत इन शहरों में जहर बन जाता है?
ऐसा क्या है इन शहरों की हवाओं में जो दूध से बने सफेद खीर को भी काला बना देता है? शरद पूर्णिमा की रात को खुले आकाश के नीचे खीर रखने का परंपरा का महत्व क्या है और ऐसा किया क्यों जाता है?
सवाल कई हैं, जिनका जवाब एक-एक कर हम देने की कोशिश करेंगे।
सबसे पहले आपको शरद पूर्णिमा का महत्व और उस रात को खुले आकाश के नीचे खीर पकाकर रखने की परंपरा की वजह बताते हैं।
क्या है शरद पूर्णिमा का महत्व?
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चांद धरती के सबसे करीब आ जाता है। इस वजह से उसकी रोशनी में चांद की सभी शक्तियां समाहित होती हैं। वहीं पौराणिक मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को ही श्रीकृष्ण गोपियों और राधारानी संग महारास करते हैं।
इसके अलावा यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को माता लक्ष्मी अपने वाहन पर सवार होकर धरतीवासियों से मिलने आती हैं। इस दिन जो रात भर दीया जलाकर और जागरण कर माता लक्ष्मी की पूजा करता है, उसके घर में कभी भी धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।
क्यों खीर पकाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है?
मान्यताओं में कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चांद धरती के करीब आने की वजह से उसकी रोशनी में चांद की सभी ईश्वरीय गुण मौजूद होते हैं। इस वजह से कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी रात को आसमान से अमृत की बारिश होती है।
इसके साथ ही इस दिन श्रीकृष्ण के साथ राधारानी और गोपियां महारास करती हैं जिनकी शक्तियों का फल भी चांद की रोशनी में विद्यमान होता है। इसलिए कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को अगर कोई व्यक्ति खीर पकाकर चांद की रोशनी में खुले आकाश के नीचे रखता है तो उस खीर में ये सभी ईश्वरीय गुण मिल जाते हैं।
काली पड़ जाती है खीर
भारत के कई राज्यों में शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर चांदनी रात में खुले आकाश के नीचे रखने की परंपरा है, जो खासतौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में निभायी जाती है। लेकिन क्या आपको पता है, कई शहर ऐसे हैं जहां शरद पूर्णिमा की रात को खुले आकाश के नीचे खीर से भरा कटोरा रखने पर कुछ देर बाद वह खीर काली पड़ जाती है! जी नहीं, हम कोई मनगढंत कहानी नहीं सुना रहे हैं बल्कि बिल्कुल सच बता रहे हैं जिसके बारे में हमें स्थानीय लोगों ने बताया है।
इस बारे में विस्तार से बताने से पहले आपको बता दें, इस साल शरद पूर्णिमा 16 अक्तूबर की रात को 8.14 बजे से 17 अक्तूबर की शाम 04.53 बजे तक रहेगी।
क्यों काली पड़ती है खीर?
शरद पूर्णिमा की रात को खुले आकाश के नीचे कटोरा भर दूध सा सफेद खीर रखने पर उसका काला पड़ जाने में कोई आलौकिक और दिव्या अथवा कोई शैतानी शक्ति का हाथ नहीं बल्कि वजह कुछ और है। दरअसल, हम जिन शहरों की बात कर रहे हैं इन सभी शहरों के आसपास कोयले की खान मौजूद है।
इसलिए वहां कोयले की खुदाई होने की वजह से हवा में कोयले के बारीक कण हमेशा तैरते रहते हैं, जो शायद नंगी आंखों से दिखाई भी नहीं देते। लेकिन रात के समय जब लोग भक्तिभाव से खुले आकाश के नीचे खीर से भरा कटोरा रखते हैं तो उस खीर पर कोयले के बुरादे की परत बिछ जाती है जो सफेद खीर पर स्पष्ट नजर आती है।
कौन से शहरों में होता है ऐसा?
मुख्य रूप से जिन शहरों में खीर काली पड़ जाती है, वो हैं –
छत्तीसगढ़ – कोरबा, बिलासपुर, रायपुर
मध्य प्रदेश – सिंगरौली, छिंदवाड़ा
झारखंड – हजारीबाग- झारिया
ऐसा सिर्फ शरद पूर्णिमा की रात को ही नहीं बल्कि आम तौर पर भी होता है। इसलिए इन शहरों के लोगों को भारी मुश्किलें भी होती हैं। खासतौर पर स्ट्रीट फूड आदि को लेकर काफी ज्यादा स्वच्छता बरतनी पड़ती है। इसके साथ ही हल्के रंग के कपड़ों का जल्द गंदा हो जाना, हल्की आंधी आने पर भी धूल और कोयले के कणों का हवा में फैल जाने से सांस लेने में दिक्कत आदि समस्याएं तो यहां सामान्य दिनों में भी बनी रहती है।
शरद पूर्णिमा को इन शहरों में काली पड़ जाती है खीर, जब आसमान से बरसता है अमृत, क्यों होता है ऐसा?
